"राजयोग" एक प्राचीन भारतीय योग सिद्धांत है जो श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए वार्ता को विषय बनाता है, जो महाभारत के "भगवद गीता" में मिलता है। राजयोग का उद्देश्य मन को नियंत्रित करना, आत्मा का अध्यात्मिक विकास करना और अंत में ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना है।
राजयोग का शास्त्रीय रूप संस्कृत में "योग सूत्र" के रूप में है, जिसे महर्षि पतंजलि ने रचा था। यहां कुछ मुख्य अंशों को समझाया जा सकता है
अष्टांग योग
राजयोग को "अष्टांग योग" भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें आठ मुख्य अंग (आध्यात्मिक साधना) होते हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि।
यम और नियम
इन दोनों के अंगों के माध्यम से योगी को आचारशीलता और नैतिकता की प्राप्ति होती है, जिससे मानवीय और आध्यात्मिक विकास होता है।
आसन
योगी को आसनों का अभ्यास करना होता है जो स्थिरता और सुख के साथ बैठने में मदद करते हैं।
प्राणायाम
इसमें नियमित श्वास-प्रश्वास और प्राण की निगरानी का अभ्यास होता है जिससे मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि
इन चरणों में मन की निगरानी और एकाग्रता की शिक्षा दी जाती है, जिससे योगी अपने आत्मा का अध्यात्मिक अनुसंधान कर सकता है।
राजयोग का उद्दीपना और प्रसार हिन्दू धर्म में हुआ है, लेकिन यह विभिन्न धार्मिक और योगिक परंपराओं में भी अपनाया जा रहा है।
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